जन्म | : | विक्रम सम्वत्, 1948 श्रावण शुक्ला चतु्दर्शी -मंगलवार |
जन्म स्थान | : | औद्योगिक नगरी पाली-मारवाड़ (राजस्थान) |
माता | : | धर्म परायणा श्रीमती केसर देवी सोलंकी – मेहता |
पिता | : | सेठ श्री षेशमल जी जैन सोलंकी – मेहता |
वैराग्य भावना | : | वि.सं. 1969 (अक्षय तृतीया) |
सद्प्रेरणा श्रोत | : | वचनसिध्दि के धनी स्वामी श्री मानमलजी म.सा.
महान तपोधनी स्वामी श्री बुध्द मल जी म.सा. |
दीक्षा | : | विक्रम सम्वत् 1975 अक्षय तृतीया - मंगलवार, सोजतसिटी - राजस्थान |
गुरू | | परम श्रध्देय महान तपोधनि स्वामी श्री बुध्दमल जी म.सा. |
अध्ययन | : | जिनागम थोकड़े, हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, उर्दू, ज्योतिश, व्याकरण, |
महत्वपूर्ण पदवियां | : | मरूधर केसरी पद वि.सं. 1993
मंत्री पद वि.स. 1990
प्रवर्तक पद वि.स. 2025
श्रमण सूर्य पद वि.सं. 2033 आदि अनेक पदों से विभूशित।
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षिश्य - प्रषिश्य : | : | श्रमण संघीय सलाहकार उप प्रवर्तक श्री सुकन मुनि जी म.सा., तपस्वी -रत्न
ज्योतिशविद् श्री अमृत चन्द्र जी म.सा. 'प्रभाकर', युवाकवि रत्न डॉ. श्री अमरेष मुनि जी म.सा. 'निराला', सेवाभावी श्री महेष मुनि जी म.सा., श्री अखिलेष मुनि जी भतीजे षिश्य - प्रषिश्य : लोकमान्य वरिश्ट सन्त, षेरे राजस्थान, प्रवर्तक श्री रूपचन्द जी म.सा.
'रजत', सेवाभावी श्री महेन्द्र मुनि जी म.सा.,पण्डित श्री राकेष मुनि जी म.सा., गायक श्री मुकेष मुनि जी म.सा., व्याख्यानी श्री हरीष मुनि जी म.सा., सेवाभावी श्री
नानेष मुनि जी म.सा. हितेष मुनि जी, प्रवेष मुनि जी, सचिव मुनि जी
षिश्याएँ : परम विदुशी महासती श्री तेजकंवर जी म.सा. आदि ठाणा 5.
परम विदुशी राजमति जी म.सा.
परम विदुशी महासती श्री पुश्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि ठाणा 4.
परम विदुशी महासती श्री धर्मप्रभा जी म.सा. आदि ठाणा 2.
परम विदुशी महासती श्री इन्दुप्रभा जी म.सा. आदि ठाणा 3.
परम विदुशी महासती श्री मंगल ज्योति जी म.सा. |
स्वर्गारोहण | | विक्रम सम्वत् 2040 पोश सुदी चवदस मंगलवार 17 जनवरी सन् 1984, जैतारण, राजस्थान जो आज मरूधर केसरी पावन धाम के नाम से विख्यात हैं। श्रध्दालुओं के भक्ति का केन्द्र बना हुआ हैं। |
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पाँच हजार पृश्ठ से भी अधिक गद्य-पद्य मय अनेक साहित्य रचना। गुरूदेव का जैसा नाम वैसा ही काम था, जैसे-मिश्री कड़क होती है, लेकिन उसमें मिठास भी होता हैं। इसी प्रकार आप वाणी से कड़क और जन हित की भावना से समाहित थे। आप बाबा जी के नाम से भी विख्यात थे क्योंकि फकीरी का आनन्द हर समय आपके चेहरे पर विद्यमान रहता था। संगठन के पुजारी, समाज सुधारक, दीन असहायों के सहायक, स्पश्टवादी एवं जन कल्याण के कार्यो में भक्तों को प्रेरित करके अरबों का दान दिलवाया। गुरूदेव ने जैन धर्म के अहिंसा ध्वज को देष के कौने-कौने में फहराया। संप्रदायवाद से परे होकर श्रमण संघ को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। पाँच साधु सम्मेलन आपने अपने सानिध्य में करवायें। अहिंसा, अपरिग्रह, और अनेकान्तवाद आदि जैन धर्म के मूल सिध्दान्तों को आपने जन-जन तक पहुंचाया। गुरूदेव ने केवल मानव कल्याण का ही नहीं, अपितु प्राणी मात्र के कल्याण का कार्य किया। आपने अपनी हर चर्चा में 'जियो और जिने दो' के सन्देष को दोहराया और आगे बढ़ाया। आपका अदम्य साहस, उत्साह लगन और सबके साथ सूझ भरी दूरगामी दृश्टि के ऐसे सद्गुण थे कि जो जीवन के हर कदम पर उनके साथ थे। आपका दृश्टिकोण व्यापक व उदार था। आपके पास हर समय छत्ताीस ही कौम के लोग अपनी समस्याओं को लेकर आते और समाधान पाकर प्रसन्नचित्ता हो जाते थे। आप जन-जन के श्रध्दा के केन्द्र बने हुए हैं।
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